100 DAYS READING CAMPAIGN
WEEK 2 ACTIVITY
Let's read about SWAMI VIVEKANAND on occasion of National Youth Day -12 January
Narendranath Datta, better known to the world as Swami Vivekananda, was born on January 12, 1863. Since 1984, we observe January 12 as National Youth Day. He has been an inspiration for the youth of the nation and will remain so for many more generations to come.
Life incidents of Swami Vivekananda. As a student, these will inspire you.
1. Well-read:
Swami Vivekananda was a voracious reader. While he stayed in Chicago, he used to go to the library and borrow large volumes of books and return them to the librarian in a days time. The frustrated librarian then asked Swami Vivekananda why he borrowed books when he doesn't want to read them, she was all the more annoyed when he said he finished reading all of those books. She said she would take a test and selected a random page from a book and asked him to tell what was written there; without even a glance at the book he repeated the lines exactly as they were written. She asked him several more questions and he answered all of them without a flaw.
2. The Fearless:
Swami Vivekananda was 8 years old when this incident happened. He loved to dangle head down from a champak tree in his friend's compound. One day he was climbing the tree and an old man approached him asking him not to climb the tree. The old man was probably scared that Swami could fall and break his limbs or was just being protective about the chamapaka flowers. when the kid questioned him why the old man told him that there was a ghost living on the tree and it would hurt him and break his neck if he climbed the tree again. Swami nodded and the old man walked away. The not so convinced 8-year-old climbed the tree again, all of his friends were scared and asked him why he was doing it despite knowing that he would be hurt; he laughed and said 'What a silly fellow you are! Don't believe everything just because someone tells you! If the old grandfather's story was true then my neck would have been broken long ago.'
Now that's exceptional common sense for an 8-year-old, isn't it!
3. He was incredibly compassionate:
Swami Vivekananda represented India and Hinduism in the Parliament of World religion, in Chicago, and before going abroad, he was tested by his mother on whether he had the right to preach Hinduism. After a delicious supper, both of them sat down to eat some fruits. Swami cut the fruit, ate it and after that, his mother asked him for the knife; he handed over the knife to his mother and she was more than pleased. She said 'you have passed the test and you are now eligible to preach the world,' a confused Swami questioned her what was she talking about?
His mother replied, "Son, when I asked for the knife, I saw how you handed it to me, you gave the knife by holding its sharp edge and kept the wooden handle of knife towards me; so that I would not get hurt when I take it and this means you took care of me. And this was your test in which you passed."
To have compassion and being able to take good care of others is a remarkable quality, it is the law of the nature that the more selfless you are the more you will receive; and so did Swami Vivekananda.
4. The Wit:
Swami was travelling in a train and was wearing a wrist watch that caught the attention of a few girls present in the train, they were making fun of his clothes and his appearance; they decided to play a prank.
The girls asked him to give them the watch else they would complain to the cops that he was harassing them, he then remained silent and acted deaf; made signs to the girls to write what they wanted to say on a piece of paper, the girls wrote it on the paper and gave it to him.
Any ideas what he did next? He then spoke; he called the cops and said 'I have a complaint to make.'
5. The Power Of Concentration:
While Swami Vivekananda was in America, some boys were standing on the bridge and trying to shoot eggshells that were floating in the water. They failed almost at every try, Vivekananda who was watching them from a distance went close to them, took the gun and fired twelve times, and every time he fired, he hit the eggshell. The inquisitive boys asked him how he did it? He replied "Whatever you are doing, put your whole mind on it. If you are shooting, your mind should be only on the target. Then you will never miss. If you are learning your lessons, think only of the lesson. In my country boys are taught to do this."
1. स्वामी विवेकानंद की परीक्षा
विवेकानंद अपने गुरु से विशेष लगाव रखते थे। जब उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हुई उसके पश्चात उन्होंने अपने गुरु के कार्यों को आगे बढ़ाने उनकी शिक्षा उनके आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लेते हुए विदेश जाने का निश्चय किया। वह आशीर्वाद और विदाई लेने अपनी माता के पास पहुंचे। माँ को अपने गुरु के उद्देश्यों को बताया।
मां ने अपने पुत्र तत्काल आदेश नहीं दिया। वह दुविधा में थी कि वह अपने पुत्र को विदेश भेजे या नहीं?
वह चुपचाप अपने कार्यों में लग गई, जब वह सब्जी बनाने की तैयारी कर रही थी तब उन्होंने विवेकानंद से चाकू मांगा। विवेकानंद उस चाकू को लेकर आते हैं और मां को बड़े ही सावधानी से देते हैं। मां उसके इस व्यवहार से अति प्रसन्न होती है और मुस्कुराते हुए आशीर्वाद के साथ अपने गुरु के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए कहती है।
विवेकानंद जी को आश्चर्य होता है वह उनकी प्रसन्नता और इस कृत्य पर प्रश्न करते हैं आखिर उन्होंने पुत्र को विदेश भेजने के लिए कैसे निश्चय किया? तब उनकी मां ने बताया तुमने मुझे जिस प्रकार चाकू दिया चाकू की धार तुमने अपनी और पकड़ा और उसका हत्था मुझे सावधानी से थमाया, इससे यह निश्चित होता है कि तुम स्वयं कष्ट सहकर भी दूसरों की भलाई की सोचते हो। तुम किसी का अहित नहीं कर सकते हो, तुम अपने गुरु के कार्यों को कठिनाई सहकर भी आगे बढ़ा सकते हो।
मां की इस परीक्षा के आगे स्वामी विवेकानंद नतमस्तक हुए और मां शारदा से आशीर्वाद लेकर वह जन कल्याण के लिए गुरु के कार्यों के लिए मां से विदा लेकर घर से निकल गए।
2. शिक्षा से समाज सेवा
एक समय की बात है स्वामी विवेकानंद अपने आश्रम में वेदों का पाठ कर रहे थे, तभी उनके पास चार ब्राह्मण आए वह बड़े व्याकुल थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह किसी प्रश्न का हल ढूंढने के लिए परिश्रम कर रहे हैं।
चारों ब्राह्मण ने स्वामी जी को प्रणाम किया और कहा – स्वामी जी! हम बड़ी दुविधा में हैं , आपसे अपने समस्या का हल जानना चाहते हैं। हमारी जिज्ञासाओं को शांत करें
स्वामी जी ने आश्वासन दिया और जानना चाहा
कैसी जिज्ञासा ? कैसा प्रश्न है आपका ?
ब्राह्मण बोले महात्मा हम चारों ने वेद – वेदांतों की शिक्षा ग्रहण की है। हम सभी समाज में अलग-अलग दिशाओं में घूम कर समाज को अपने ज्ञान से सुखी, संपन्न और समृद्ध देखना चाहते हैं।
इसके लिए हमारा मार्गदर्शन करें !
स्वामी जी के मुख पर हल्की सी मुस्कान आई और उन्होंने ब्राह्मण देवताओं को कहा –
है ब्राह्मण! आप सभी यह सब लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं, इसके लिए आपको मिलकर समाज में शिक्षा का प्रचार प्रसार करना होगा।
ब्राह्मण देवता शिक्षा से हमारा लक्ष्य कैसे प्राप्त हो सकता है ?
स्वामी जी जिस प्रकार बगीचे में पौधे को लगाकर बाग को सुंदर बनाया जाता है, ठीक उसी प्रकार शिक्षा के द्वारा समाज का उत्थान संभव है।
शिक्षा व्यक्ति में समझ पैदा करती है , उन्हें जीवन के लिए समृद्ध बनाती है। साधनों से संपन्न होने में शिक्षा मदद करती है, सभी अभाव को दूर करने का मार्ग शिक्षा दिखाती है। यह सभी प्राप्त होने पर व्यक्ति स्वयं समृद्ध हो जाता है।
3. फ्रांसीसी विद्वान का घमंड चूर
यह उन दिनों की बात है जब स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका के शिकागो शहर में अपना ऐतिहासिक भाषण देने गए हुए थे। अपने भाषण को सफलतापूर्वक पूरे विश्व के पटल पर रख कर, अन्य देशों का भ्रमण करने निकले।
इसी क्रम में वह फ्रांसीसी प्रसिद्ध विद्वान के घर अतिथि हुए।
स्वामी विवेकानंद ने उस विद्वान का आतिथ्य स्वीकार किया और उनके घर पहुंचे।
स्वामी जी का स्वागत घर में सम्मानजनक हुआ। स्वामी जी के रुचि अनुसार भोजन की व्यवस्था थी। विदेश में इस प्रकार का भोजन मिलना सौभाग्य की बात थी।
भोजन के उपरांत वेद-वेदांत और धर्म की बड़ी-बड़ी रचनाओं पर शास्त्रार्थ आरंभ हुआ।
शास्त्रार्थ जिस कमरे में हो रहा था, वहां एक मेज पर लगभग डेढ़ हजार पृष्ठ की एक धार्मिक पुस्तक रखी हुई थी।
स्वामी जी ने उस पुस्तक को देखते हुए कहा – यह क्या है ?
मैं इसका अध्ययन करना चाहता हूं। फ्रांसीसी विद्वान आश्चर्यचकित हो गया।
उसने कहा स्वामी जी कहा यह दूसरे भाषा की पुस्तक है, आप तो भाषा को जानते भी नहीं है।
आप इतने पृष्ठों का अध्ययन कैसे कर सकेंगे?
मैं इसका अध्ययन स्वयं एक महीने से कर रहा हूं !
स्वामी जी – यह आप मुझ पर छोड़ दीजिए एक घंटे के भीतर में आपको अध्ययन करके लौटा दूंगा।
फ्रांसीसी विद्वान को अब क्रोध आने लगा, स्वामी जी इस प्रकार का मजाक मेरे साथ क्यों कर रहे हैं ?
किंतु स्वामी जी ने विश्वास दिलाया, इस पर फ्रांसीसी विद्वान ने मनमाने ढंग से वह पुस्तक स्वामी जी को सौंप दिया।स्वामी जी उस पुस्तक को अपने दोनों हाथों में रखकर एक घंटे के लिए योग साधना में बैठ गए।
स्वामी जी उस पुस्तक को अपने दोनों हाथों में रखकर एक घंटे के लिए योग साधना में बैठ गए।
जैसे ही एक घंटा बीता होगा , फ्रांसीसी विद्वान उस कमरे में आ गया।
स्वामी जी क्या आपने पुस्तक का अध्ययन कर लिया
हां अवश्य !
आप कैसा मजाक कर रहे हैं ?
मैं इस पुस्तक को एक महीने से अध्ययन कर रहा हूं। अभी आधा भी अध्ययन नहीं कर पाया हूं, और आप कहते हैं आपने अध्ययन कर लिया।
हां अवश्य!
स्वामी जी आप मजाक कर रहे हैं!
नहीं तुम किसी भी पृष्ठ को खोल कर मुझसे जानकारी ले सकते हो!
उस विद्वान ने ऐसा ही किया।
पृष्ठ संख्या बत्तीस बोलने पर स्वामी जी ने उस पृष्ठ पर लिखा प्रत्येक शब्द अक्षरसः कह सुनाया।
फ्रांसीसी विद्वान के आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी।
वह स्वामी जी के चरणों में गिर गया। उस विद्वान ने स्वामी जैसा व्यक्ति आज से पूर्व नहीं देखा था।
उसे यकीन हो गया था, यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है।
लक्ष्य पर ध्यान लगाओ
स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे . एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बन्दूक से निशाना लगाते देखा . किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था . तब उन्होंने ने एक लड़के से बन्दूक ली और खुद निशाना लगाने लगे.
उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगा ….. फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाये और सभी बिलकुल सटीक लगे . ये देख लड़के दंग रह गए और उनसे पुछा , – भला आप ये कैसे कर लेते हैं ?
स्वामी जी बोले , – तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ. अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए. तब तुम कभी चूकोगे नहीं . अगर तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो . मेरे देश में बच्चों को यही करना सिखाया जाता है.
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